
HDFC बैंक, जो देश का सबसे बड़ा निजी क्षेत्र का बैंक है, इन दिनों एक विवाद के कारण सुर्खियों में है। बैंक के एमडी और सीईओ श्री शशिधर जगदीशन पर मुंबई के लीलावती हॉस्पिटल ट्रस्ट द्वारा गंभीर वित्तीय और कानूनी आरोप लगाए गए हैं। हालांकि, बैंक ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि यह सब एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है।
🧾 क्या हैं आरोप?
लीलावती किर्लोस्कर मेहता मेडिकल ट्रस्ट, जो मुंबई के प्रसिद्ध लीलावती अस्पताल का संचालन करता है, ने 7 जून 2025 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर HDFC बैंक के CEO पर कई गंभीर आरोप लगाए:
- ₹2.05 करोड़ की नकद रिश्वत लेने का आरोप
- बिना अनुमति ₹25 करोड़ की ट्रस्ट राशि HDFC बैंक में जमा करवाना
- ट्रस्ट के पुराने सदस्यों से साठगांठ
- CEO और उनके परिवार को मुफ्त या विशेष मेडिकल सुविधा देना
- साक्ष्यों से छेड़छाड़ और न्याय में बाधा डालने की कोशिश
ट्रस्ट का दावा है कि इन सभी कार्यों में CEO की “प्रत्यक्ष भागीदारी” रही है।
🛡️ HDFC बैंक का स्पष्टीकरण
HDFC बैंक ने 8 जून को एक आधिकारिक बयान जारी कर ट्रस्ट के सभी आरोपों को बेबुनियाद, दुर्भावनापूर्ण और झूठा बताया। बैंक के अनुसार:
“कुछ बदनीयत लोग जानबूझकर कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग कर रहे हैं ताकि बैंक को पुराने बकाया लोन की वसूली से रोका जा सके।”
बैंक ने यह भी कहा कि ट्रस्ट और इसके सदस्य खुद बैंक के पुराने कर्जदार हैं और पिछले दो दशकों से लोन नहीं चुकाया गया है।
⚖️ कानूनी लड़ाई की लंबी कहानी
प्रशांत मेहता और उनके परिवार पर आरोप है कि वे वर्षों से बकाया लोन नहीं चुका रहे हैं और अब जब बैंक कानूनी रूप से वसूली करने की दिशा में सक्रिय हुआ है, तो उन्होंने CEO पर व्यक्तिगत हमले शुरू कर दिए हैं।
बैंक का कहना है कि मामला पहले से ही सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है और ट्रस्ट हर स्तर पर हार चुका है। अब नए आरोप लगाकर CEO और बैंक को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
🤝 बैंक का विश्वास और रुख
“हम अपने CEO की ईमानदारी और नेतृत्व क्षमता पर पूरा विश्वास रखते हैं। बैंक को भरोसा है कि भारतीय न्यायपालिका इस साजिश को समझेगी और सच्चाई को उजागर करेगी।”
बैंक ने कानूनी सलाह लेकर यह तय किया है कि वह सभी आवश्यक कानूनी उपाय करेगा ताकि CEO की प्रतिष्ठा की रक्षा हो सके।
🔍 क्या यह सिर्फ एक पारिवारिक विवाद है?
जानकारों के अनुसार, लीलावती ट्रस्ट खुद पिछले दो दशकों से पारिवारिक झगड़े का केंद्र रहा है। ट्रस्ट के भीतर आपसी संघर्ष, वर्चस्व की लड़ाई और संपत्ति से जुड़ी बहसें पहले भी सामने आ चुकी हैं।
ऐसे में कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यह विवाद सिर्फ बैंक के CEO तक सीमित नहीं है, बल्कि एक पुराना पारिवारिक और आर्थिक झगड़ा अब बैंक के कंधे पर डालने की कोशिश हो रही है।
📌 निष्कर्ष
HDFC बैंक और लीलावती ट्रस्ट के बीच यह विवाद न केवल कानूनी और वित्तीय मामला है, बल्कि यह एक संस्था की साख और नेतृत्व पर सीधा हमला भी है। अब सबकी निगाहें भारतीय न्यायपालिका पर टिकी हैं, जो तय करेगी कि इस विवाद में सच किस ओर है।
अगर यह आरोप साबित होते हैं, तो यह कॉर्पोरेट गवर्नेंस पर एक बड़ा प्रश्नचिन्ह होगा। लेकिन अगर ये आरोप गलत साबित होते हैं, तो यह एक साफ इशारा होगा कि कैसे संस्थाएं कर्ज की वसूली से बचने के लिए रणनीति बनाती हैं।